Friday, August 10, 2012

Story telling

Anirudh participated in story telling competition in his school and came back super happy after coming in the 2nd position.

He had told me a week before about the competition and the story he plans to narrate. He then asked me to help him out in making the props of the characters in the story. After deciding that we shall get to it sometime later in the day, we both totally forgot about it until the evening before the competition.

So after finishing the dinner and putting Nishka to bed we got down to it. Thankfully Nishka was so co-operative that she went to sleep without a fuss that day.

So out came the white sheets, after some searching though. Out came the crayons, the pencil, the scissors. I drew out the outlines of the chracaters using pencil - A king and his three princes.

I then emphasized the outlines using a black sketch pen. As I kept completing one character I would pass it on to Anirudh for coloring them up.

We also needed to draw a dragon but I wasn't confident to draw it freehand. So I asked hubby to trace it on an A4 sheet using his laptop which we then pasted on the thicker sheet and then carried on to repeat the steps of outlining and coloring.

After all the coloring was done, we got down to cutting them to their shapes and then pasted ice cream sticks for holding the props during the story narration. I was surprised that we finished the whole of the activities in just about 40-45 minutes. That's a feat in itself!

I forgot to take pictures after we had done making the props and when Betu returned he had lost the props for one prince and the dragon. So here is the pic of what he brought back -



Since these were all drawn freehand, the shapes of face/eyes etc. may please be ignored.
I also want to capture here the story which he narrated  -

एक राजा था| उसके तीन बेटे थे - तरुण, वरुण और अरुण | तीनो बेटे बहुत आलसी थे| वो कुछ काम नही करते थे| सारा दिन बस सोते रहते थे| राजा ने एक दिन तीनो बेटो को बुलाया और कहा "कल मेरा ज्न्म दिन है| मैं तुम तीनो को रू100 देता हूँ और तुम लोग जाकर मेरे लिए एक तोहफ़ा लायो| तुम्हारे पास 1 दिन का समय हॅ|

तीनो बेटे चल दिए राजा के लिए तोहफ़ा लाने | तरुण जगह जगह घूमा. यहाँ गया. वहाँ गया | बहुत घूमने के बाद उसको एक कलाकार मिला | उसने बहुत सुंदर चित्र बनाए हुए थे | तरुण ने सोचा की राजा को यह खूबसूरत चित्र बहुत पसंद आएँगे | उसने सारे चित्र खरीद लिए और वापस महल की ओर चल दिया |

वरुण भी खूब इधर उधर घूमा पर उसको कुच्छ समझ नही आया. घूमते घूमते वो जंगल पहुँच गया. उसने वहाँ एक गुफा देखी. उसने देखा गुफा में कुछ चमक रहा है. वो गुफा के अंदर गया तो उसने देखा एक बहुत बड़ा ड्रॅगन बैठा है जिसके सिर पर एक बहुत बड़ा चमकदार मोती है. वरुण ने ड्रॅगन से पूछा "क्या तुम मुझे अपना यह मोती दोगे? मैं यह अपने पापा तो तोहफ़े में देना चाहता हूँ." तो ड्रॅगन बोला "अगर तुम यह वादा करो की तुम मुझे रोज़ मछली ला कर दोगे तो मैं यह मोती तुम्हे दे दूँगा." वरुण ने वादा करा और उसे मछली ला कर दे दी और ड्रॅगन ने अपना मोती उसको दे दिया. वरुण खुशी खुशी महल की ओर चल दिया.

अरुण भी अपने भाईयों की तरह इधर उधर खूब भटका पर उसे कुछ भी पसंद नही आया जिसे वो अपने पापा को जन्मदिन पर दे सके. घूमते घूमते वो इतना थाक गया की एक पेड़ के नीचे जा कर सो गया. जब वो सो कर उठा तो उसने देखा पास में कुच्छ ग़रीब बच्चे बैठे थे. वोह बहुत भूखे थे. अरुण ने अपने पैसो से उनके लिए खाना और कपड़े खरीद दिए. बच्चे बहुत खुश हुए. और अरुण वापस महल की ओर जाने लगा.

यह सब राजा के सिपाहियों ने देखा लिया और महल पहुँच कर राजा को सब बता दिया |

अगले दिन जब तीनो बेटे राजा के सामने आए | तरुण ने अपने खरीदे हुए चित्र राजा को दिए और राजा ने बहुत खुश हो कर वोह महल में लगवा दिए | वरुण ने अपना बड़ा चमकदार मोती राजा को दिया और बताया की वो कैसे उसने एक बड़े ड्रॅगन से लिया है | राजा बोला की वो उस मोटी को अपने मुकुट में लगवाएगा | जब अरुण की बारी आई तो उसने उदास हो कर बोला की मैं आपके लिए कोई तोहफा नही ला सका | तो राजा ने उससे पूछा की उसने दिए हुए पैसों का क्या करा तो उसने बताया की उसने गारीडब बच्चों के लिए खाना और कपड़े खरीदने में वो पैसे खर्च कर दिए | राजा यह सुन कर बहुत खुश हुया और बोला "यह मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफा है" और फिर राजन ने अरुण को इनाम दिया |"

ह्में इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की तोहफा हमेशा पैसों से नही खरीदा जाता. और हम किसी के लिए अच्छा करते हैं तो उसमे हमारा भी अच्छा होता है |

I've no idea if he had read this story somewhere or was it a mix of his imagination and a previously read story. But I really liked the way he showed enthusiasm and participated.

P.S. Don't know why but hindi text is not legible in Chrome but appears fine in IE.

5 comments:

  1. Well Done Anirudh and his dear Mommy!
    Those props are beautifully done. I dont see anything wrong with shapes.So well made.

    And WOW..that story...You have a SMART boy there Nids! Way to gooo Anirudh! Good Job!

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    1. Thanks LB.

      How can you not see the two different shaped and sized eyes of the king?

      How can you not see the lopsided jaw of the prince on the rightmost in the above pic?

      But yes..finishing the whole activity in 45 min was a feat in itself :)

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  2. I can only repeat what life begins said, I don't see anything wrong in the props you and Anirudh made. They look lovely!
    And the story is so amazingly good for his age that I really wonder on what basis he only got second position. Well done, Anirudh!

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  3. loved the story !! Awesome work Anirudh !

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  4. btw ..the props look awesome..i could not have been abel to do this in 45 days :P

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